Considerations To Know About भाग्य Vs कर्म
Considerations To Know About भाग्य Vs कर्म
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हम लोग दैनिक जीवन की मामूली से मामूली बातों में देख सकते हैं की स्ट्रेस करने से थकान महसूस होती है , एनर्जी लेवल डाउन होता है और काम बिगड़ जाता है
आचार्य जी पहुंचे और सबसे मिलने लगे, उन्होंने मुझे देखा, मुस्कुराये और सभी से थोड़ी देर बाद मिलने को कहा।
हर चीज एक कर्म है, कुछ करना एक कर्म है और कुछ न करना भी एक तरह का कर्म है।
यहां यह समझना भी जरूरी है कि भाग्य होता क्या है। साधारण शब्दों में कहा जाए तो कुछ अप्रत्याशित होने को ही भाग्य कहा जाता है। अच्छा हो तो सौभाग्य, बुरा हो तो दुर्भाग्य। बहुत से लोग मानते हैं कि भाग्य नाम की चीज होती ही नहीं। मनुष्य अपने पुरुषार्थ के बल पर ही भाग्य (तकदीर) का निर्माण करता है। कहा जाता है कि उद्योग करने वाले सिंह के समान पुरुष को लक्ष्मी स्वयं प्राप्त होती है।
महाराज मानते हैं कि केवल कर्म करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उसे सही दिशा में करना भी आवश्यक है। इसके साथ ही, भक्ति, साधना, और आत्म-अवलोकन के माध्यम से व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है। ईश्वर की कृपा और भक्ति से, कर्म के प्रभाव को भी बदला जा सकता है। जब व्यक्ति सच्चे मन से प्रयास करता है और धर्म के मार्ग पर चलता है, तो ईश्वर उसका मार्ग प्रशस्त करते हैं।
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वास्तव में देखा जाए तो भाग्य और कर्म एक सिक्के के दो पहलू हैं
गीता अनुसार जिस फल को पाने के लिए कर्म किया जाता है जरूरी नहीं कि वह मिले ही और मन चाहे रूप में मिले। ऐसा क्यों? इसका कारण है कि मनुष्य के पास अपनी मर्जी से काम करने की स्वतन्त्रता तो है लेकिन काम शुरू करने के पहले उसका आगा-पीछा सोच पाने और सारे पहलुओं को देख-समझ पाने की क्षमता बहुत सीमित है। जैसा कि ऊपर के उदाहरणों से स्पष्ट है। अधिक तैयारी करने वाले परीक्षार्थी की तमाम मेहनत के बावजूद वह इस बात को नहीं देख सकता था कि पेपर बनाने वाला उन अध्यायों में से सवाल दे देगा जो उसने नहीं पढ़े। अर्थात जब आप कोई काम कर रहे होते हैं तो हो सकता है कि उसके विपरीत कहीं कोई और काम चल रहा हो जो आपकी सारी मेहनत पर पानी फेर दे। इन्हीं अनदेखी, अनजानी परिस्थितियों के कारण मिलने वाला फल ही भाग्य होता है। अर्थात यह कहना गलत नहीं होगा कि किसी का कर्म किसी का भाग्य होता है और इन दोनों को अलग-अलग न देख कर यह मानना चाहिए कि ये more info दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।
प्रेमानंद महाराज के पास कई लोग अपनी जिज्ञासाएं और समस्याएं लेकर आते हैं। प्रेमानंद महाराज के विचार और उपदेश भारतीय आध्यात्मिक परंपराओं और वेदांत पर आधारित होते हैं और इसी ज्ञान क आधार पर वो लोगों के सवालों का समाधान करते हैं। जब उनसे ये सवाल पूछा गया कि क्या कर्म के द्वारा भाग्य को बदला जा सकता है, तो उन्होंने कहा कि कर्म और भाग्य दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण पहलू हैं और ये एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हुए हैं।
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मैं-तो फिर आचार्य जी आपने ज्योतिष क्यों सीखी? क्या आप इसे अपनी गलती मानते हैं कि आपने ज्योतिष सीखकर अपना समय बर्बाद किया, या जो भी आपसे ज्योतिष सीख रहे हैं वह अपना समय बर्बाद कर रहे हैं?
मैं-मैं समझ गया, ज्योतिष जैसे दुर्लभ और विराट विज्ञान को समझने के लिए आचार्य जी मुझे तैयार कर रहे थे। मैं शांत मन से उनके पास बैठ गया और फिर उनसे इस गंभीर विषय को समझना शुरू किया।
अर्थात:- मेहनत से ही कार्य पूरे होते हैं, सिर्फ इच्छा करने से नहीं। जैसे सोये हुए शेर के मुँह में हिरण स्वयं प्रवेश नहीं करता बल्कि शेर को स्वयं ही प्रयास करना पड़ता है।
कर्म की मुख्य अवधारणा यह है कि सकारात्मक कार्य से सकारात्मक प्रतिक्रिया मिलती है और नकारात्मक कार्य का परिणाम नकारात्मक होता है। इन दोनों के बीच कारणिक संबंध व्यक्ति के स्वास्थ्य की स्थिति को शारीरिक, भावनात्मक और आध्यात्मिक दृष्टि से प्रतिदिन निर्धारित करता है।
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